नई दिल्ली, 13जनवरी 2021

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सशस्त्र बलों के लिए अडल्टरी यानी व्याभिचार को अपराध मानने के लिए केंद्र सरकार के याचिका की जांच करने के लिए बुधवार सहमति व्यक्त की. शीर्ष अदालत की एक बेंच ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुरोध किया कि वे केंद्र की याचिका पर स्पष्टीकरण जारी करने के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित करें.

सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था जिसके तहत भारत में व्यभिचार अपराध था. उस कानून ने आईपीसी की धारा 497 के तहत एक पुरुष को एक व्याभिचार के लिए सजा देने का प्रावधान था. हालांकि महिलाओं के लिए सजा नहीं थी. कानून के तहत उन्हें पुरूष की संपत्ति माना जाता था.

पूर्व CJI दीपक मिश्रा ने सुनाया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिकाकर्ता को भी नोटिस जारी किया, जिसकी याचिका पर साल 2018 में व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की याचिका पर नोटिस जारी किया और CJI को पांच न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए मामला भेजें. गौरतलब है कि सेना समलैंगिक संबंध और विवाहेतर संबंध (अडल्टरी) को दंडनीय अपराध बनाए रखना चाहती है.

सेना का मानना है कि भीतरी अनुशासन के लिए ऐसा जरूरी है. अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने कहा है कि फैसले के मद्देनजर, सेना के उन जवानों के मन में हमेशा एक चिंता रहेगी जो अपने परिवार से दूर हैं. सशस्त्र बलों के भीतर व्यभिचार को अपराध ना मानना ‘अस्थिरता’ का कारण हो सकता है क्योंकि सैन्य कर्मी, परिवार से लंबी अवधि के लिए अलग रह सकते हैं.  केंद्र ने कहा कि उसकी याचिका में जोसेफ शाइन की याचिका से संबंधित स्पष्टीकरण मांगा गया है.

केंद्र ने अपनी याचिका में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 33 के अनुसार सशस्त्र बलों के सदस्यों को मौलिक अधिकार प्रतिबंधित हैं.

साल 2018 में फैसला सुनात हुए CJI दीपक मिश्रा ने 2018 में फैसला सुनाते हुए कहा था- ‘व्यभिचार नहीं  अपराध हो सकता है. केंद्र ने अपनी दलील में कहा, 2018 का फैसला सशस्त्र बलों पर लागू नहीं होना चाहिए. मिली जानकारी के अनुसार सेना समलैंगिक संबंध और विवाहेतर संबंध (अडल्टरी) को दंडनीय अपराध बनाए रखना चाहती है.