नई दिल्ली, 27दिसंबर, 2020

दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन शुरू हुए महीना भर गुजर गया है, लेकिन केंद्र में सत्ताधारी भाजपा (BJP) की सरकार इसका कोई समाधान नहीं निकाल पाई है। यूं तो यह आंदोलन तभी से शुरू हो चुका था, जबसे केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) ने कृषि अध्यादेशों की जगह पर पिछले मानसून सत्र में संसद से तीन कृषि विधेयक (Farm Bill) (सितंबर) पास करवाए थे। लेकिन, दिल्ली की सीमाओं (Delhi’s border) पर खासकर पंजाब (Punjab) के किसान नवंबर के आखिरी दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं। इस किसान आंदोलन का मोदी सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ेगा, इसके बारे में अभी कोई भी दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता। लेकिन, इतना तय है कि इसके चलते बीजेपी को अपने दो सहयोगी दलों से हाथ धोने पड़ गए हैं। लेकिन, अगर बात मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल की करें तो अबतक बीजेपी का साथ छोड़कर जाने वाले दलों की संख्या 19 तक पहुंच चुकी है और सिर्फ एक साल के अंदर ही उनकी गिनती 6 तक पहुंच गई है।

 

किसानों के मुद्दे पर दो दलों ने छोड़ा है भाजपा का साथ

जब, कृषि विधेयक (Farm Bill)संसद ने पास किया तो जून में इसी पर लाए गए अध्यादेश पर चुप रहे भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने मोदी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। पार्टी से एकमात्र मंत्री रहीं हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) मोदी सरकार से अलग हो गईं। इस मुद्दे पर बीजेपी के सहयोगियों में दूसरा विकेट गिरा है, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP)का, जिसने आंदोलनकारी किसानों के समर्थन में एनडीए (NDA) से अलग होने की घोषणा की है। पार्टी के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल (Hanuman Prasad Beniwal) हालांकि पहले से ही भाजपा से दूरी बनाने का संदेश दे रहे थे,लेकिन अब उन्होंने औपचारिक तौर पर गठबंधन तोड़ दिया है। लेकिन, जब से भारतीय जनता पार्टी पर मोदी-शाह की जोड़ी की पकड़ मजबूत हुई है, तब से बीजेपी से दूर होने वाली सहयोगियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है।

 

कुछ पार्टियां भाजपा के साथ भी आई हैं

आज की तारीख में भाजपा की सहयोगी दलों की संख्या सिर्फ 16 ही रह गई हैं, जिनमें से कई कि कोई खास राष्ट्रीय हैसियत भी नहीं है। इनमें से कुछ ऐसी राजनीतिक पार्टियां भी हैं जो पिछले कुछ समय में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा बनी हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन छोड़कर आने वाली जीतन राम मांझी का हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) उन्हीं दलों में शामिल हैं। वैसे मांझी 2017 में भाजपा का साथ छोड़ भी चुके थे। इसी तरह से पिछले दिनों ही असम (Assam) में बीटीसी चुनावों (BTC elections) के बाद प्रमोद बोरो की यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी(UPI) भी भाजपा के साथ जुड़ी है, जिससे पार्टी की सेहत वहां सुधर गई लगती है। लेकिन, भाजपा के साथ जुड़ने वाली पार्टियों की संख्या उसका साथ छोड़कर जाने वालों के मुकाबले बहुत ही कम हैं।

 

करीब एक साल में 6 पार्टियों ने छोड़ा भाजपा का साथ

अगर सिर्फ पिछले करीब एक साल की बात करें तो 6 पार्टियां बीजेपी से दूर हो गई हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम महाराष्ट्र की शिवसेना (Shiv Sena) का है, जिसने 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी से 30 साल पुराना संबंध तोड़ लिया। जबकि, इसी अक्टूबर महीने में पीसी थॉमस की अगुवाई वाली केरल कांग्रेस (Kerala Congress) भी एनडीए (NDA)से अलग हो गई थी। इसी महीने में असम में बीटीसी चुनाव के समय बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट भी बीजेपी से छिटक कर दूर चली गई। इसी साल कर्नाटक में प्रज्ञानवथा पार्टी भी एनडीए से अलग हो चुकी है।

 

2014 से ही भाजपा के सहयोगियों के जाने का सिलसिला

भाजपा से उसके एनडीए सहयोगियों के मोहभंग होने का सिलसिला दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों के कुछ समय बाद से ही शुरू हो गया था। सबसे पहला नाम कुलदीप विश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस का है, जो उस साल लोकसभा चुनावों से कुछ समय बाद ही भाजपा से गठबंधन तोड़ गए। उसी साल तमिलनाडु की एमडीएमके (MDMK)भी तमिल हित की बात करते हुए एनडीए से खुद को किनारे कर लिया। 2014 में ही आंध्र प्रदेश में अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना का भी बीजेपी से मुंह भंग हो गया था।

 

6 साल में कुल 19 पार्टियां एनडीए से अलग हुईं

2016 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले वहां पर बीजेपी की दो सहयोगी पार्टियां डीएमडीके (DMDK)और रामदौस की पीएमके (PMK) भी बीजेपी की सहयोगी नहीं रही। उसी साल केरल में भी विधानसभा चुनाव होने थे और वहां भी रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी बीजेपी से अलग हो गई। 2017 में एक और पार्टी भाजपा पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाकर अलग हो गई थी। महाराष्ट्र की यह पार्टी थी- स्वाभिमान पक्ष। इसी तरह नगालैंड की नगा पीपुल्स फ्रंट भी भारतीय जनता पार्टी से अलग हो चुकी है। 2018 में जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी भी एनडीए से बाहर निकल गई थी। 2018 में एनडीए को एक तगड़ा झटका चंद्रबाबू नायडू ने लगाया था, जब उनकी तेलुगू देशम पार्टी (TDP)गठबंधन से अलग हो गई थी। यह पार्टी वाजपेयी के जमाने से राजग की बहुत ही भरोसेमंद सहयोगी थी। आगे बारी आई पश्चिम बंगाल के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की, जिसका उत्तर बंगाल के इलाके में प्रभाव माना जाता है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बिहार में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी (RLSP)भी एनडीए से निकल गई। इसी तरह यूपी में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी लोकसभा चुनावों में मन-मुताबिक सीटें नहीं मिलने के चलते भाजपा का साथ छोड़ दिया।