देहरादून, 24 जून 2021

उत्तराखंड में आजकल संवैधानिक संकट को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आमने सामने हैं एक-दूसरे को नियमों का अध्ययन करने की सलाह दे रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संविधान विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं। आपको बता दें कि राज्य में 10 मार्च 2021 को नेतृव परिवर्तन हुआ था और अब फिर से पूरे उत्तराखंड में सीएम के बदलने के कयास शुरू हो गए हैं। वजह है उनका विधानसभा का सदस्य न होना और विधानसभा चुनाव होने में एक साल से कम समय का होना।

*2 सीटें हैं खाली लेकिन अनुच्छेद 151ए के तहत नहीं हो सकता उपचुनाव*

उत्तराखंड में मौजूदा वक्त में दो विधानसभा सीट खाली हैं। पहली गंगोत्री सीट जो कि अप्रैल में गोपाल सिंह रावत के निधन की वजह से रिक्त हुई और दूसरी सीट है हल्द्वानी जो कि इसी जून माह में कांग्रेस की कद्दावर नेता इंदिरा हिरदेश के निधन की वजह से खाली हुई हैं। लेकिन चुनाव आयोग के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए के तहत ऐसे राज्य में जहां चुनाव होने में एक साल का वक्त बचा हो और उपचुनाव के लिए रिक्त हुई सीट अगर एक साल से कम समय में रिक्त हुई है तो चुनाव नहीं होगा। यानि मौजूदा नियम के मुताबिक दोनों सीट उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय होने के बाद खाली हुई है लिहाजा इन पर चुनाव नहीं हो सकता है।

*सीएम तीरथ को 9 सितंबर तक बनना है विधानसभा का सदस्य*

अनुच्छेद 151ए को माना जाए तो अब उत्तराखंड में कोई भी उपचुनाव नहीं होगा। ऐसे में बगैर विधानसभा सदस्य बने 6 माह से ज्यादा कोई सीएम नहीं रह सकता। तो संवैधानिक नियम के मुताबिक मौजूदा सीएम तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना होगा क्योकि उन्होंने 10 मार्च 2021 को सीएम पद की शपथ ली थी और उन्हें 9 सितंबर 2021 तक उत्तराखंड में विधानसभा का सदस्य बनाना है। चुनाव आयोग के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए के मुताबिक अब उत्तराखंड में उपचुनाव हो नहीं सकते क्योंकि मार्च 2022 में उत्तराखंड के मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होना है और राज्य में चुनाव होने हैं।

*क्या कहता है अनुच्छेद 164*

वहीं 164 के तहत राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियो की नियुक्ति करता है। संविधान के अनुच्छेद 164 के पैरा 4 में स्पष्ट है कि कोई मंत्री जो 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल दल का सदस्य नही हैं उसे 6 माह के भीतर चुनाव लड़ना होगा और ऐसा न होने पर वह सदस्य नहीं रहेगा। भाजपा नेताओं का तर्क है कि मुख्यमंत्री ने जिस दिन शपथ ली उस दिन एक साल से अधिक समय चुनाव के लिए था इसलिए हम 151 की श्रेणी से बाहर है। अभी 6 माह भी नहीं हुए हैं और सीट भी खाली है। चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है और उसे तत्काल चुनाव कराना चाहिए।

*संविधान का अनुच्छेद 171 करेगा तीरथ की रक्षा*

संविधान विशेषज्ञ एडवोकेट विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि उत्तराखंड में कोई संवैधानिक संकट नहीं है। विकेश सिंह नेगी ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 171 के सेक्शन 5 के अंतर्गत महामहिम राज्यपाल को मनोनीत करने का अधिकार प्राप्त है। राज्यपाल साइंस, आर्ट, उधोगपति, या समाजसेवी में से किसी भी ब्यक्ति को मनोनीत कर सकती है। उन्होंने कहा कि इस अनुच्छेद के तहत इलाहाबाद हाॅइकोर्ट का जजमेंट यानि निर्णय हर्ष शरण बर्मा, चंद्रभान गुप्ता आदि का 15 फरवरी 1961 का है। जिसमें हाॅइकोर्ट ने कहा है राजनेता भी सोशल वर्कर यानि समाजसेवी होते हैं। इस आर्टिकल के तहत मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कुर्सी पर कोई खतरा नहीं है। विकेश सिंह नेगी ने कहा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को पहले इस्तीफा देना होगा। महामहिम राज्यपाल दुबारा अनुच्छेद 171 के तहत उन्हे पद व गोपनीयता की शपथ दिला सकती है। विकेश सिंह नेगी ने कहा राज्यपाल की शक्तियों और विवेक पर ही तीरथ की कुर्सी बची रह सकती है। तीरथ तभी मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं जब महामहिम राज्यपाल संविधान के तहत दी हुई अपनी शक्तियों का प्रयोग करें।

*अभी भी सांसद हैं तीरथ सिंह रावत*

2019 में बीजेपी से पौढ़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर सांसद बने तीरथ सिंह रावत ने अब तक अपने सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है।