देहरादून, 1 जुलाई 2021

सोशल मीडिया पर आजकल उत्तराखंड के भू-कानून को लेकर जबरदस्त प्रचार प्रसार हो रहा है,प्रदेश की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां इस मुहीम को आगे बढ़ने पर लगी हुई है। लेकिन दो राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी चुपचाप तमाशा देख रही है। क्योँकि उत्तराखंड के निर्माण के बाद कही न कही इस भूमिका में इनकी लापरवाही साफ़ दिखी है। इस बीच आगामी विधानसभा चुनावों से पहले उत्तराखंड के युवाओं ने औने पौने दाम पर बिक रही कृषि भूमि को बचाने के लिए मजबूत भू कानून की मांग को लेकर अभियान छेड़ दिया है। वक्त की नजाकत को समझते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हमारी सरकार ने वर्ष 2016 में उत्तराखंड को एक नया भू कानून पर्वतीय क्षेत्रों की खेती की चकबंदी का बनाकर के दिया। एक कमेटी हमने बनाई थी, जिसके अध्यक्ष आज भाजपा के सांसद हैं। हमने नियम-उपनियम सब बना दिये थे, क्रियान्वित करने तक चुनाव आ गये। इधर मैं, पर्वतीय क्षेत्रों की चकबंदी के कानून को लेकर कुछ सुन नहीं रहा था, अब आवाज उठी है तो, मैं कहना चाहता हूॅ कि हमने भू सुधार को एक प्रमुखता दी थी।

सोशल मीडिया मंच पर बीते एक सप्ताह से भू कानून की मांग ट्रेंड कर रही है। इस बार इस कानून के पक्ष में आम युवा एकजुट होकर सामने आ रहे है, बीते सप्ताह में ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भू कानून के समर्थन में युवा जोरदार अभियान छेड़े हुए हैं।

क्या है उत्तराखंड में बर्तमान भू-कानून

उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद साल 2002 तक अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। 2007 में यह सीमा 250 वर्गमीटर कर दी गई । 6 अक्टूबर 2018 को तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह सरकार द्वारा नया अध्यादेश लेकर आई जिसके मुताबिक “उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संसोधन का विधेयक पारित किया गया,जिसमे धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ी गई। यानी पहाड़ो में भूमिखरीद की अधिकतम सीमा ही समाप्त कर दी गई । इसके बाद 6 दिसंबर 2018 को भू कानून में बदलाव का संशोधन विधेयक,विधानसभा के के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया। 4 जून 2019 को मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया गया कि उत्तराखंड के मैदानी जिलों-देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में भूमि की हदबंदी(सीलिंग) खत्म कर दी जाएगी. इन जिलों में भी तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी. इसके लिए सरकार ने अध्यादेश लाने का एलान भी किया गया।

किस सरकार ने क्या किया
2002 : उत्तराखंड राज्य के बनने के बाद बाहरी लोगों द्वारा ज्यादा भूमि खरीदने की आशंका को देखते हुए तिवारी सरकार ने हिमाचल की तर्ज पर भूमि कानून अध्यादेश पेश किया था। तिवारी सरकार ने इसके लिए बहुगुणा समिति का गठन किया था। इस कमेटी ने तत्कालीन अध्यादेश में सम्मिलित प्रावधानों की समीक्षा कर, उसमें जुड़े कठोर नियमों को सरल कर दिया था। जिस कारण उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में बेरोकटोक भूमि व्यापार का धंधा चल निकला। इसके बावजूद नारायणदत्त तिवारी सरकार ने एक व्यवस्था कर दी थी, इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में जो व्यक्ति मूल अधिनियम धारा 129 के तहत जमीन का खातेदार न हो, वह बिना अनुमति के 500 वर्गमीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता है।

खंडूरी सरकार के आने पर यह सीमा घटा कर 250 वर्गमीटर कर दी गयी। यानी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र में बाहरी व्यक्तियों को सिर्फ 250 वर्गमीटर से अधिक भूमि खरीदने की अनुमति नहीं थी।

अब नयें संशोधनों के बाद बाहरी व्यक्ति के लिए भूमि खरीदने के लिए कोई रुकावट नहीें है। यानी पहाड़ में कम जोत वाला व्यक्ति आर्थिक दबाव में आनन फानन में भूमिहीन हो सकता है। 250 वर्ग मीटर से अधिक की खरीद न करने के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गयी थी, न्यायालय ने आदेश को नहीं माना था। फिर मामला उच्चतम न्यायालय के पास पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 250 वर्ग मीटर तक की भूमि सीमा को सही माना था।

सरकारी आकड़ो के मुताबिक बर्ष 2000 तक उत्तराखंड में कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी l इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से उपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी। इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,22 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी, यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग ! बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी l उपरोक्त आँकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है और बची 88 फीसदी कृषक आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुँच चुकी है। आगे पढ़िए हिमाचल का भू-कानून क्या कहता है।

क्योँ हो रही है हिमाचल भू-कानून की मागं

हिमाचल प्रदेश सरकार ने बर्ष 1972 में एक सख्त भू-कानून बनाया। कानून के अनुसार बाहर के लोग हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते है । हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ यसवंत सिंह परमार ने इस कानून को बनाया । लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 के नाम से प्रसिद्ध इस एक्ट के 11वे अध्याय में कण्ट्रोल ऑन ट्रांसफर ऑफ़ लैंड ( control on transfer of lands ) में धारा -118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नही खरीदी जा सकती। गैर हिमाचली नागरिक को यहां जमीन खरीदने की इजाजत नही।

कमर्शियल प्रयोग के लिए आप जमीन किराए पे ले सकते हैं। 2007 में धूमल सरकार ने धारा -118 में संशोधन किया और कहा कि बाहरी राज्य का व्यक्ति, जो हिमाचल में 15 साल से रह रहा है, वो यहां जमीन ले सकता है। राज्य में इसका जबरदस्त बिरोध हुआ और बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया।